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आर्मीनिया-अज़रबैजान विवाद:नागोर्नो-काराबाख़ इलाके में रूस ने तैनात किए शांति-सैनिक


आर्मीनिया और अज़रबैजान में हुए समझौते के बाद नागोर्नो और काराबाख़ के विवादित हिस्सों में रूस ने सैकड़ों शांति सैनिक टुकड़ियों को तैनात किया है,आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच हफ़्तों तक भारी लड़ाई चली, जिसके बाद सोमवार को रूस इन दोनों देशों के बीच एक शांति-समझौता करवा पाने में सफल रहा।

नागोर्नो और काराबाख़ क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अज़रबैजान का हिस्सा माना जाता है, मगर 1994 से वो इलाक़ा वहाँ रहने वाले जातीय आर्मीनियाई लोगों के हाथों में है,रूस द्वारा करवाये गए शांति समझौते से अज़रबैजान में तो ख़ुशी की लहर देखी गई, पर आर्मीनिया में कुछ लोगों ने इसे लेकर रोष प्रकट किया है,शांति समझौते की शर्तों के अनुसार, अज़रबैजान उन इलाक़ों पर अब अपना नियंत्रण कायम कर सकेगा जिन्हें उसने लड़ाई के दौरान आर्मीनिया से छीन लिया है।

स शांति समझौते पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, अज़रबैजान के राष्ट्रपति इलहाम अलीयेव और आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान के हस्ताक्षर हुए हैं और यह समझौता स्थानीय समयानुसार मंगलवार रात एक बजे से लागू हो गया है,समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक टीवी संबोधन में कहा कि रूस के शांति सैनिकों को गश्त के लिए फ़्रंट लाइन पर तैनात किया जाएगा ताकि किसी तरह का टकराव ना हो।

उन्होंने बताया कि रूस के शांति सैनिकों की कुछ टुकड़ियाँ मंगलवार को उल्यानोस्क के एक एयरबेस से नागोर्नो और काराबाख़ क्षेत्र के लिए भेजी जा चुकी है,कम से कम दो हज़ार रूसी सैनिक अंततः इस क्षेत्र में सक्रिय होंगे जो ‘लाचिन कॉरिडोर’ की रखवाली करेंगे।

लाचिन कॉरिडोर काराबाख़ की राजधानी स्टेपनाकर्ट को आर्मीनिया से जोड़ता है,इसके अलावा, इस क्षेत्र में 90 बख्तरबंद वाहन भी तैनात किये जाने हैं तो इस पंचवर्षीय मिशन के हिस्से के रूप में तैनात होंगे।

राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि ‘इस शांति समझौते के तहत सभी आर्थिक और परिवहन संपर्क बहाल किये जायेंगे. साथ ही समझौते के मुताबिक़, युद्ध बंदियों को भी एक-दूसरे को सौंपा जाएगा।

रूस के आर्मीनिया और अज़रबैजान, दोनों देशों के साथ क़रीबी संबंध हैं. रूस इन दोनों ही देशों को हथियार बेचता है. इसके अलावा, आर्मीनिया में रूस का आर्मी बेस भी है और दोनों देशों (रूस-आर्मीनिया) के बीच सैन्य गठबंधन भी है।

वहीं तुर्की, जिसने खुले तौर पर अज़रबैजान के साथ खड़े रहने की बात कही थी, वो भी इस शांति प्रक्रिया में हिस्सा ले रहा है. अज़रबैजान के राष्ट्रपति इलहाम अलीयेव ने इसकी सूचना दी. हालांकि, तुर्की की इस समझौते में क्या भूमिका है, इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई।

 

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