निशिकांत ठाकुर(लेखक वरिष्ठ पत्रकार)
मेरे इस लेख के प्रकाशित होने तक प्रधानमंत्री की 12 रैलियों में से कुछ रैलियां हो चुकी होंगी। जाहिर है, माहौल भी बदल चुका होगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति मतदाताओं का जो नकारात्मक भाव हो चुका था, उसमे निश्चित रूप से सुधार आया होगा। ऐसी उम्मीद एनडीए के अधिकतर नेताओं को है। आज के समय में अपनी मार्केटिंग तो सभी करते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार जी इस बार अपनी वह मार्केटिंग किसी से नहीं करा सके । इसीलिए वह छोटी-छोटी बातों पर चुनावी सभा में अपना आपा खोने लगे हैं और बेतुका बयान देने लगे है। उनके कई बयान आज जनता के बीच मखौल बना हुआ है । पता नहीं इतने पढ़े लिखे , इतने ऊंचे ऊंचे पद पर आसीन रहे मुख्यमंत्री ने यह बयान क्यों दिया कि समुद्र के किनारे के राज्य विकसित होते हैं और अब फिर जब वह यह जान गए हैं कि बिहार का विकास नहीं हो सकता। वहां उद्योग नहीं लग सकेगा, वह रोजगार नहीं दे सकेंगे तो क्या फिर बिहार इसी प्रकार उजाड़ होता रहेगा?
तब क्या इसी प्रकार वहां के लोग अन्य राज्यों में अपमानित और जलील होते रहेंगे , जैसा कि लॉकडाउन में हुआ। फिर ऐसी स्थिति में उनका दायित्व यह स्वयं बनता है कि वह सार्वजनिक रूप से जानता के सामने कहें की अब यह राज्य विकसित नहीं हो सकता, इसलिए जो बिहार का विकास योजनाबद्ध तरीके से कर सकता हो वह सत्ता संभाले । अब विपक्ष इस मुद्दे को गरमाने में लगा हुआ है कि जब मुख्यमंत्री यह जानते थे कि अब इस राज्य में कोई उद्योग नहीं लग सकता , विकास कुछ हो नहीं सकता, अपने युवा बेरोजगारों को रोजगार नहीं दे सकते हैं फिर इतने दिनों तक उन्हें गुमराह क्यों किया ?
राज्य की भोली भाली जनता को वह और उनकी सरकार धोखा क्यों देती रही ? दावे स्वर में सभी नेता यह कहते सुने जा सकते है कि बिहार के सत्यनाश का एक कारण शराब बंदी भी है । इतने वर्षों में जो राजस्व का घाटा राज्य को हुआ और कोई उद्योगपति उद्योग लगाने नहीं आया, इसका मूल कारण शराब बंदी ही है । लेकिन , जोर से और सार्वजनिक मंच से इस बात को कोई कहने को तैयार नहीं है । लोग तो यह भी कहते हैं शराबबंदी कमाने का जरिया बन गया है। आप जब और जहां चाहे शराब कोरियर से कहीं भी मांगा सकते है।
हां, मूल्य दुगुना या तिगुना देना पड़ सकता है।दूसरा तीर भी विपक्ष का बड़ा सटीक सत्तारूढ़ दल के निशाने पर लगा । राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि यदि उनकी ( राष्ट्रीय जनता दल) सरकार बनी तो वह दस लाख बेरोजगारों को रोजगार देंगे । बस, फिर क्या था । सत्तारूढ़ दल के सभी नेता चाहे वह जदयू के हो या भाजपा के इस जोड़ घटाव में लग गए की यह संभव ही नहीं है । दिल्ली से गए बड़े बड़े नेता भी इस बात का स्पष्टीकरण देने में लग गए की यह संभव ही नहीं है कि बिहार के दस लाख लोगों को राज्य में रोजगार कोई दे सके । भाजपा से उपमुख्मंत्री सुशील मोदी ने तो पाई पाई का जोड़ चुनावी सभा में बताने लगे कि यह धन आएगा कहां से ? अलबत्ता अब भाजपा ने 19 लाख लोगों को रोजगार देने का प्रण किया है । अब पता नहीं भाजपा और जदयू के नेता किस खजाने से उन्हें पैसा देंगे।
मुख्यमंत्री ने आक्रोश में कहा कि क्या यह पैसा जेल से आएगा । उनका आशय स्पष्ट था कि क्या लालू यादव जेल से पैसा भेजकर दस लाख लोगों को रोजगार देने पर वेतन देंगे । बिहार के इस चुनाव ने यह दिखा दिया कि सत्ता की कुर्सी पाने के लिए नेता कितने निम्न स्तर पर गिर सकते है और किस किस तरह के आरोप प्रत्यारोप लगाकर मतदाताओं को रिझाने में लगा सकते हैं । मुख्यमंत्री ने तंज कसा कि तेजस्वी यादव अभी राजनीति के नौसिखिए है। नौसिखिए ने झट से कहा, फिर उन्हें डिप्टी चीफ मिनिस्टर सरकार में क्यों बनाया था? इन सारी बातों और आरोप-प्रत्यारोपों से यही लगता है कि राजनीति का स्तर कितना गिर सकता है । इस स्थिति का निराकरण प्रधानमंत्री की रैलियों के बाद शायद हो सकता है कुछ कम हो। अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री बिहार में अपनी साझा सरकार बनाने के लिए किस तरह की राजनीति के जड़ में पानी अथवा मठ्ठा डालते हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ही देश के कई मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों से मेरे संबंध अच्छे रहे हैं। यहां तक कि देश के लगभग कई प्रधानमंत्रियों से अपनापन रहा है । सभी अपने राज्य और देश के प्रति , उसके विकास के प्रति , उसके युवा बेरोजगारों के प्रति उसके भविष्य के प्रति चिंतित रहे हैं । क्योंकि सब जानते हैं कि उनसे एक उम्मीद आम जनता को होती है कि सब हमारे भविष्य के प्रति जागरूक हैं और हमारे रोजी रोटी के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन, यकायक किसी मुख्यमंत्री द्वारा राज्य की जनता को यह कह देना की उनके राज्य में अब उनके विकास का कोई द्वार खुला नहीं है तो फिर ऐसी स्थिति की प्रतिक्रिया क्या होगी? इसकी कल्पना कोई विवेकशील बुद्धिमान व्यक्ति आसानी से कर सकता है ।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हुई कई मुलाकातों में से एक भेट का उल्लेख करना चाहूंगा । बिहार में जब बाढ़ आई थी, तो बिहार के सहरसा जिले के एक गांव को हरियाणा सरकार ने गोद लेकर उसका निर्माण कराया । निर्माण के बाद उस गोद लिए गाव को बिहार सरकार को समर्पित करना था । उस कार्यक्रम में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ मै भी था । वापसी में बिहार के मुख्यमंत्री , हरियाणा के मुख्यमंत्री के साथ चार्टर्ड विमान में जो बात हुई उसमें नीतीश जी का रोना यहीं था कि आप एक धनी और विकसित राज्य के मुख्यमंत्री हैं , लेकिन मेरा राज्य गरीब है ।
शायद मुख्यमंत्री नीतीश जी को उस समय तक नहीं मालूम था किं हरियाणा समुद्र के किनारे का राज्य नहीं है और वह एक बहुत ही छोटा और देश का सर्वाधिक विकसित राज्यों में एक है।
शायद अब उन्हें याद आया हो की कोई भी राज्य विकसित हो सकता है यदि उस राज्य के मुखिया उसे विकसित करना चाहे । यदि सेनापति अथवा राजा समर्पण कर देता है तो लाखों सेनाओं के होते हुए भी देश को हार स्वीकार करना पड़ता है । उदाहरण 16 अप्रैल 1971 आपके सामने है जहां लाख सेना के होते हुए भी पाकिस्तानी सैनिकों को समर्पण करना पड़ा ।
मुझे अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शायद अपने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मनोबल टूट चुका है इसलिए उन्हें या तो समर्पण कर देना चाहिए अथवा स्वामी विवेकानंद की नीति उठो और जागो से अपने में उत्साह भरना चाहिए । अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है इसलिए अपना रोना बंद करके बिहार के विकास के लिए कमर के बेल्ट को और कस लेना चाहिए । बिहार की जनता को गौरवशाली पढ़े लिखे योग्य राजनीतिज्ञ पर गर्व होगा । चुनाव तो हार जीत का एक संवैधानिक नियम है, इसका मान सम्मान तो आपको करना ही होगा ।
(निशिकांत ठाकुर लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक) जी की फेसबुक वाल से।
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