ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और प्रमुख मौलाना, मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि ‘इस देश में मुस्लिमों ने हमेशा कोर्ट के फैसले का सम्मान किया है और करते रहेंगे.’ उन्होंने फैसले को चुनौती देने पर आगे चर्चा करने की संभावना भी जताई.
लखनऊ:
लखनऊ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने 28 साल पुराने बाबरी विध्वंस केस में फैसला सुनाते हुए मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है. फैसला आने के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और प्रमुख मौलाना, मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली की प्रतिक्रिया आई है. ज्यादा कुछ टिप्पणी करने इनकार करते हुए उन्होंने कहा है कि ‘इस देश में मुस्लिमों ने हमेशा कोर्ट के फैसले का सम्मान किया है और करते रहेंगे.’ उन्होंने फैसले को चुनौती देने पर आगे चर्चा करने की संभावना भी जताई.
उन्होने कहा, ‘फैसले पर कहने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है. सबको पता है कि 6 दिसंबर, 1992 को सार्वजनिक तौर पर कैसे बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था और कैसे कानून की धज्जियां उड़ाई गईं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आखिरी फैसले में कहा था कि – मुस्लिमों को गलत तरीके से एक मस्जिद से महरूम रखा गया है, जो 400 साल पहले बना था. सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैरकानूनी विध्वंस भी कहा था. ऐसे में कोर्ट को तय करना था कि इसका कोई दोषी है या नहीं. अब मुस्लिम संगठन साथ में इकट्ठा होंगे और तय करेंगे कि इस फैसले पर अपील करने का कोई मतलब है या नहीं.’
रशीद ने कहा, ‘कोई मुजरिम है या नहीं, यह तो अदालतों को ही तय करना होता है. अब मुस्लिम संगठन मिल-बैठकर तय करेंगे कि आगे अपील करनी है या नहीं. अपील करने का कोई फायदा होगा भी या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.’ उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान के तमाम मुसलमान हमेशा से अदालतों के फैसलों का सम्मान करते आए हैं और हमेशा करते रहेंगे.
बता दें कि सीबीआई की विशेष अदालत ने छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में बुधवार को अपना फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया. स्पेशल जज एसके यादव ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी, यह एक आकस्मिक घटना थी. अदालत ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं थे. उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिद का ढांचा असामाजिक तत्वों ने गिराया था और इन आरोपी नेताओं ने उन्हें रोकने की कोशिश की थी