ज्योतिषाचार्य पंडित हृदयरंजन शर्मा बताते हैं कि 31अक्टूबर से 3 नवंबर कार्तिक मास की अमावस्या को इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है।इस पर्व को वर्ष में दो बार मनाया जाता है।पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में।चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है।
यह पर्व चार दिनों तक चलता है।भैया दूज के तीसरे दिन से यह आरंभ होता है।पहले दिन सैंधा नमक,घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है।अगले दिन से उपवास आरंभ होता है।इस दिन रात में खीर बनती है।व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं।तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं।अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं।