बलबीर सिंह सीचेवाल पंजाब के जाने-माने पर्यावरणविद् हैं जिन्हें इको बाबा के नाम से जाना जाता है। साल 2000 में, बलबीर सिंह ने फैसला किया कि पंजाब के दोआबा क्षेत्र में ब्यास नदी की 160 किमी लंबी सहायक नदी काली बेइन को खत्म करने वाले घरेलू और औद्योगिक कचरे के बारे में कुछ किया जाना चाहिए। काली बेइन नदी को राज्य में कई लोगों द्वारा पवित्र माना जाता है लेकिन कचरे की वजह से एक नाली के रूप में तब्दील हो गई थी। नदी के कुछ हिस्से सूख भी गए थे, जिससे खेतों में पानी की समस्या पैदा हो गई थी।
बलबीर सिंह ने स्थानीय लोगों को नदी की सफाई के महत्व को समझाया औऱ अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने की कोशिश की। जिसके बाद 24 से अधिक गांवों के निवासियों के योगदान से सफाई के लिए आवश्यक उपकरण खरीदने की शुरूआत हुई। उन्होंने मिल कर पूरे नदी तल से जलकुंभी और गाद को साफ किया। इतना ही नहीं, टीम ने नदी के किनारे वृक्षों को लगाया, स्नान घाट तैयार किए और सड़कों के सौंदर्यीकरण पर भी काम किया। इको बाबा ने एक जन जागरूकता अभियान की भी शुरूआत की, जिसमें ग्रामीणों से आग्रह किया गया कि वे नदी में कचरा ना डाल कर कहीं और डालें।
नदी को साफ करने के बाद उसे प्राकृतिक झरनों से जोड़ा गया और एक बार फिर से भरना शुरू कर दिया गया। इसके बाद, बलबीर सिंह ने पंजाब सरकार की मदद से एक भूमिगत सीवरेज सिस्टम मॉडल विकसित किया। यह एक कम लागत वाला मॉडल है जो तालाबों से सीवेज का पानी इकट्ठा करता है और इसे प्राकृतिक तरीके से साफ करता है। इस पानी का उपयोग कृषि और सिंचाई के प्रयोजनों के लिए किया जा सकता है। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इको बाबा के काम की कई वर्षों से सराहना की जा रही है।
पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में काम करने के अलावा, बलबीर सिंह ने विभिन्न स्थानों पर स्कूल और कॉलेज भी स्थापित किए हैं। इस वर्ष फरवरी में, वह संत अवतार सिंह यादगारी तकनीकी अनुसंधान केंद्र में उनके मार्गदर्शन में विकसित मशीन के साथ ठोस अपशिष्ट के उपचार के लिए आया था। इस वर्ष फरवरी में, संत अवतार सिंह यादगारी तकनीकी अनुसंधान केंद्र में उनके मार्गदर्शन में एक मशीन विकसित की गई है जो कि ठोस अपशिष्ट को उपचार करती है।
यह मशीन कचरे से पॉलिथीन, कांच और लोहे जैसे भारी कणों को अलग करने में मदद कर सकती है। इस मशीन का निर्माण सस्ते में किया जा सकता है और इसमें आगे के सुधार के लिए परीक्षण जारी है।