गाजीपुर/मोहम्मदाबाद:-
आजादी से पहले और बाद में लगातार अपनी भागीदारी के साथ जिम्मेदारी निभाने वाला माढूपुर गांव देश के नक्शे व गूगल मैप से गायब है, गांव के लोग नौ साल से अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ग्रामीणों को किसी भी सरकारी योजना का लाभ भी नही मिल पाता है,यहाँ के निवासियों के पास न ही आयुष्मान भारत योजना का गोल्डन कार्ड है और न ही शौचालय। यहां के युवा आय, जाति और मूलनिवास प्रमाण पत्र भी अपने गांव के नाम से नहीं बनवा पा रहे हैं। यानि जिस गांव में वे रहते हैं वहां का पता नहीं लिखते बल्कि पड़ोसी गांव ही उनकी पहचान बन गया है।
गाजीपुर में मोहम्मदाबाद तहसील के 2497 की आबादी वाला गांव माढूपुर की अपनी कोई पहचान नहीं है,सरकारी दस्तावेज से लेकर पोस्टआफिस, मानचित्र, खतौनी, इंतखाब, किसान बही समेत तमाम जगह गांव का आधिकारिक नाम नजर नहीं आता। गांव को 2011 तक माढूपुर नाम से जानते थे लेकिन 2011 की जनगणना में जिम्मेदारों ने ऐसी गलती की कि खामियाजा गांव की युवा पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है।
माढूपुर का नाम गूगल के नक्शे से गुम कर दिया गया और जनसंख्या को महरूपुर ग्रामसभा में दर्शा दिया, अब गांव धरातल पर है लेकिन कागजों में वजूद ही नहीं मिल रहा। गांव में न तो आयुष्मान भारत योजना के गोल्डन कार्ड बन पा रहे हैं, न प्रधानमंत्री आवास। बेसलाइन के तहत शौचालय लाभार्थियों की लिस्ट में ग्रामीणों का नाम नहीं था। प्रधान की जद्दोजहद के बाद एलओबी वन और टू में नाम डाला गया। ऐसे में गाहे-बगाहे कुछ विकास परियोजना जैसे तैसे आती हैं, वह भी पास के दूसरे गांव महरूपुर के नाम पर।
यहाँ के निवासी काटते हैं विभागों चक्कर-
गांव के प्रधान जयराम तिवारी के मुताबिक एनआईसी और गूगल मैप में कोई डाटा न होने के कारण गांव तमाम सरकारी योजनाओं और सुविधाओं से वंचित है। सांसद, विधायक, एमएलसी और प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर लखनऊ के सक्षम अधिकारियों तक को शिकायत दर्ज कराई लेकिन कोई भी बदलाव न हो सका।
जेबी वहाँ के एसडीएम राजेश कुमार गुप्ता से जानकारी ली गई तो कहा कि मामला संज्ञान में आया है, डीआईओ और एनआईसी से बात कर सुधार का प्रयास करेंगे।