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दिल्ली: अखिल भरतवर्षीय यादव महासभा ने मनाया रेजांगला शौर्य दिवस, घरों मे दीप जलाकर दी शहीदों को श्रद्धांजलि।


नई दिल्ली:-

चीन का विवाद अपनी करतूतों के चलते हमेसा से पड़ोसी देशों से होता रहा है, ऐसा ही कुछ भारत-चीन की सीमा को लेकर विवाद होता रहा, लेकिन दोनों देशों के बीच साल 1962 में युद्ध शुरू हुआ था, इस युद्ध की मुख्य वजह हिमालय सीमा थी लेकिन कुछ अन्य मुद्दों ने भी भूमिका निभाई। इसमें वर्ष 1959 में तिब्बत के विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो चीनी सीमा पर हिंसक घटनाएं शुरू हो गई।

18 नवंबर, 1962 की सुबह लद्दाख की चुशुल घाटी बर्फ से ढंकी हुई थी, माहौल में एक खामोशी सी थी। 03.30 बजे सुबह घाटी का शांत माहौल गोलीबारी व तोपों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। बड़ी मात्रा में गोला-बारूद और तोप के साथ चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के तकरीबन 5,000 से 6,000 जवानों ने लद्दाख पर हमला कर दिया था।

मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली 13 कुमाऊं रेजीमेंट की एक टुकड़ी जिसमे खास कर यादव सैनिक थे जोकि चुशुल घाटी की हिफाजत पर तैनात थे। भारतीय सैन्य टुकड़ी में मात्र 120 जवान ही थे जोकि चीनी दुश्मन सैनिकों की विशालकाय तुलना में कुछ भी नही थे, ऊपर से बीच में एक चोटी दीवार की तरह खड़ी थी जोकि चीनी सैनिकों को के लिए और भी मददगार साबित हो रही थी, जिसकी वजह से हमारे सैनिकों की मदद के लिए भारतीय सेना की ओर से तोप और गोले भी नहीं भेजे जा सकते थे। अब 120 भारतीय जवानों को अपने बलबूते दुश्मन की विशाल फौज व हथियारों का सामना करना था।

भारतीय सैनिक काफी ज्यादा कम थे और उनके पास साजोसामान अभाव था, लेकिन भारतीय सैनिकों के हौंसले बुलंद थे। 13 कुमाऊं के वीर सैनिकों ने दुश्मनों को सही जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी।

भारत की सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे, जोकि अत्यंत साहसी व पराक्रमी थे, युद्ध में मेजर शैतान सिंह की बहदुरी व पराक्रम बल पर बाद में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। मेजर जान रहे थे कि युद्ध में उनकी हार तय है लेकिन इसके बावजूद बेमिसाल बहादुरी का प्रदर्शन कर रहे थे। भारतीय सैन्य टुकड़ी का नेत्रत्व कर रहे मेजर शैतान सिंह ने दुश्मन की फौज के सामने हथियार डालने से मना करते हुये असाधारण बहादुरी का परिचय दिया। भारतीय सैन्य टुकड़ी ने आखिरी आदमी, आखिरी राउंड और आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी,13 कुमाऊं के 120 जवानों ने अपने दुश्मन चीनी सेना के तकरीबन 1,300 सैनिक मार गिराए लेकिन विशाल सेना के सामने चुटकी भर सैनिक कब तक टिकते।

इस युद्ध में चुटकी भारतीय सैनिकों दुश्मन चीनी सेना के जवानो को लोहे के चने चबवा दिये, भारतीय सैन्य टुकड़ी से 114 मातृभूमि की रक्षा के बलिदान हो गए। जबकि 6 भारतीय जवान जिंदा बच गए थे,जिनको चीनी सैनिक युद्ध बंदी बनाकर अपने साथ ले गए थे लेकिन वे सभी चमत्कारिक रूप से चीनियों के चंगुल से बच निकले। बाद में इस सैन्य टुकड़ी को पांच वीर चक्र और चार सेना पदक से सम्मानित किया गया था।

उस युद्ध में जो छह जवान बचे थे उनमें से एक कैप्टन रामचंद्र यादव थे जोकि 19 नवंबर को कमान मुख्यालय पहुंचे और 22 नवंबर को उनको जम्मू स्थित एक आर्मी हॉस्पिटल में ले जाया गया था। उन्होंने आँखों देखी युद्ध की पूरी कहानी बताई। कैप्टन यादव का मानना है कि वह जिंदा इसीलिए बचे ताकि पूरे देश को 120 जवानों की वीरगाथा सुना सकें। रामचंद्रा यादव के मुताबिक शुरू में चीन की ओर से काफी उग्र हमला किया गया, दो बार पीछे धकेले जाने के बाद उनका हमला जारी रहा।

युद्ध में बहुत कम समय में ही भारतीय सैनिकों का गोला-बारूद खत्म हो गया और भारतीय सैनिक निहत्थे हाथों से दुश्मनों पर टूट पड़े,कैप्टन यादव ने नाईक राम सिंह नाम के एक सैनिक की कहानी बताई जो रेसलर थे, उन्होंने अकेले दुश्मन के कई सैनिकों को निहत्थे हाथों से मार गिराया, रेसलर को अकेले ही मैदान साफ करते देख चीनी दुश्मन की ओर से उनके सिर में गोली मार दी गई जिससे वे युद्ध के दौरान वीरगति प्राप्तहो गई ।

इस युद्ध मे लड़ रहे सभी सैनिक अहीरवाल क्षेत्र के थे।
13 कुमाऊं के 120 जवान दक्षिण हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र यानी गुड़गांव, रेवाड़ी, नरनौल और महेंद्रगढ़ जिलों के थे। रेवाड़ी और गुड़गांव में रेजांगला के वीरों की याद में स्मारक बनाए गए हैं, इस युद्ध में शहीद हुये ज़्यादातर जवान अहीर थे जिनकी

रेजांगला शौर्य दिवस पूरे भारत में प्रतिवर्ष धूमधाम से मनाया जाता है और वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है।

रेजांगला शौर्य दिवस को अखिल भरतवर्षीय यादव महासभा की दिल्ली यूनिट द्वारा पिछले वर्ष बड़े धूम-धाम के साथ दिल्ली के जंतर-मंतर पर आयोजन किया गया था,  जिसमें हजारों की संख्या मे लोग अपनी उपस्थित थे।

लेकिन इस वर्ष कोरोनो के चलते दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष जगदीश यादव के आदेशानुसार सभ ने अपने-अपने घरों से ही दीपक जलाकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी।

 

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