जहां दुनिया के सारे देश कोरोना के संक्रमण से जूझ रहे हैं वही एक और स्वास्थ्य समस्या विकराल रूप ले रही है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत में अगले 6 महीने में 5 साल से कम उम्र के तीन लाख बच्चों की मौत हो सकती है और यह मौतें कोरोना संक्रमण से नहीं होंगी ।
भारत में कोविड-19 के संक्रमण मामले बढ़ते ही जा रहे हैं इससे स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ बढ़ रहा है। इस समय पूरा ध्यान कोविड-19 संक्रमित मरीजों के उपचार में होने के कारण अन्य रोगों से संक्रमित मरीजों का उपचार नहीं हो पा रहा है।
संक्रमण के खतरे को देखते हुए टीकाकरण भी नहीं हो पा रहा है।
यूनिसेफ जो पूरे विश्व में बच्चों के लिए काम करती है का कहना है कि कोविड-19 के कारण प्रसव के पहले , प्रसव के बाद की देखभाल टीकाकरण तथा अन्य स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं बाधित हो रही हैं। जिसका असर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
बच्चों में कुपोषण और निमोनिया के उपचार मैं कमी भी मृत्यु का कारण होंगे। लॉकडाउन और परिवहन के साधनों में कमी के कारण अस्पताल में लोग कम जा रहे हैं।
छोटे बच्चों में संक्रमण का खतरा अधिक है इसलिए लोग बच्चों को अस्पताल में लेकर जाने से बच रहे हैं।
इसकी वजह से जरूरी टीके भी नहीं लग पा रहे हैं।
दिल्ली से सटे गाजियाबाद के वैशाली में रहने वाली मोना का बेटा 4 माह का है। मोना ने बताया कि मैंने पहले महीने के सारे टीके लगवाए थे लेकिन बाद में नहीं लग पाए हैं।
वैशाली क्षेत्र रेड जोन में है यहां कोरोना वायरस के कई मामले आ चुके हैं।
कोरोना के कारण भारत में बेरोजगारी की समस्या भी उत्पन्न हो गई है। आर्थिक तंगी की वजह से बच्चों को पौष्टिक भोजन भी नहीं मिल पा रहा है।
भारत समेत कई देशों के बच्चे अपने दैनिक आहार के लिए स्कूल में मिलने वाले मिड डे मील पर निर्भर थे।
जो स्कूल लाखों बच्चों के पोषण का जरिया था आज उन में ताला लगा है।
इस चुनौती से निपटने के लिए यूनिसेफ ने “imagine” नाम से एक अभियान शुरू किया है।
इसमें वह बच्चों को कुपोषित होने से बचाने के लिए और सफाई के प्रति जागरूक करने के लिए कार्य कर रहा है ।
दक्षिण एशिया यूनिसेफ की रीजनल डायरेक्टर Jean Gough कहती है कि इस समय महामारी से लड़ना सबसे जरूरी है , लेकिन साथ ही साथ हम पर दक्षिण एशिया की गर्भवती महिलाओं एवं नवजात शिशुओं को बचाने की जिम्मेदारी भी है।
Kanak Rai
New Delhi