लखनऊ।
भारतीय जनता पार्टी अब सपा और बसपा के वोट बैंक पर कब्जा जमाने के साथ उनके गढ़ को भी छीनने के फिराक में है। इसकी बानगी अभी हाल में हुए चुनावों और मंत्रिमंडल विस्तार में देखने को मिल रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश कभी बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का गढ़ माना जाता रहा है। बसपा सुप्रीमो मायावती बिजनौर जिले से सबसे पहले चुनाव जीतकर सांसद बनी थीं। वह यहां से पश्चिमी यूपी की सियासत को प्रभावित करती रही हैं। वर्तमान में उनके चार सांसद भी पश्चिमी उप्र से ही हैं। यहां पर बसपा के काफी विधायक सांसद चुनाव जीतते रहे हैं।
2014 के बाद से भाजपा उनके वोट बैंक पर काबिज होने लगी और दलितों को अपनी ओर आकर्षित करने लगी है। यहां के कई बड़े नेता अब भाजपा में हैं। भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के चुनाव के पहले ही दलितों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अनेक प्रकार के कार्ड खेले थे और उन्हें सफलता मिली थी। दोबारा सरकार बनने से पहले भी उन्होंने एक बाजी चली। इस बार उन्होंने कभी बसपा का गढ़ रहे आगरा से अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाली आगरा की बेबीरानी मौर्या को उत्तराखंड का राज्यपाल बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि भाजपा दलितों की सबसे बड़ी हितैषी है।